Home अजब गजब ये है असल जिंदगी के ‘गणेश गायतोंडे’, जिनके नाम से काँपती थी मुंबई, दिलचस्प है कहानी

ये है असल जिंदगी के ‘गणेश गायतोंडे’, जिनके नाम से काँपती थी मुंबई, दिलचस्प है कहानी

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प्रयागराज: नेटफ्लिक्स की सबसे दमदार और पॉपुलर वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स 2 में भी अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने गणेश गायतोंडे के किदार में एक बार फिर से दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है| एक छोटी से चाल से निकलकर पूरी मायानगरी पर राज करने वाला ये किरदार दरअसल, कई असली लोगों की जिंदगी से प्रेरित है| फिल्मी पर्दे पर या किसी वेब सीरीज में दिखने वाले कई माफिया डॉन या गैंगस्टर के किरदार हकीकत में कई असल माफियाओं की जिंदगी से मेल खाते हैं| ऐसे कई नाम हैं, जो मायानगरी में रोजगार की तलाश में आए|

अच्छा काम नहीं मिला तो छोटे मोटे काम करते रहे| लेकिन जब कुछ हासिल नहीं हुआ तो उन्होंने जुर्म के रास्ते पर कदम रख दिया| ऐसे लोगों की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी था कि जरायम की दुनिया में लोग उन्हें मुंबई का राजा बुलाने लगे थे| ऐसे ही कुछ गैंगस्टरर्स के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं|

सदानंद नाथू शेट्टी उर्फ साधु शेट्टी

साधु शेट्टी ने 18 साल उम्र में गुस्से में आकर एक नामी बदमाश का कत्ल किया था| इस घटना ने एक मामूली से वेटर सदानंद नाथू शेट्टी उर्फ साधु शेट्टी को मुंबई का डॉन बना दिया था| कर्नाटक के उडुपी जिले में जन्मा सदानंद 1970 में रोजगार की तलाश में मुंबई चला आया| लेकिन काम नहीं मिला| कुछ दिन बाद उसे चेंबूर के एक होटल में वेटर का काम मिला|

एक दिन चेंबूर का एक नामी बदमाश और शिवसेना नेता विष्णु दोगले चव्हाण जबरन वसूली के मकसद से उसी होटल पर आया| विष्णु दोगले ने होटल के मालिक की पिटाई शुरू कर दी| यह देखकर सदानंद आपा खो बैठा| उसने एक लोहे की छड़ से विष्णु के सिर पर हमला किया| हमला इतना जोरदार था कि विष्णु लहुलूहान होकर वहीं गिर पड़ा और कुछ देर में ही उसकी मौत हो गई| इस हत्या के बाद अचानक सदानंद का नाम सुर्खियों में आ गया| यह उसकी जिंदगी का पहला जुर्म था|

1993 में हुए धमाकों से पहले ही दाऊद दुबई चला गया| धमाकों की वजह से ही दाऊद और छोटा राजन अलग हो गए थे| छोटा राजन भी मुंबई से मलेशिया चला गया और उसने वहां अपना कारोबार शुरू कर दिया था| इस तरह गवली के लिए रास्ता खुल चुका था| सभी बड़े अंडरवर्ल्ड डॉन मुंबई छोड़ चुके थे| पूरा मैदान खाली था| अब जुर्म के दो खिलाड़ी अरुण गवली और अमर नाइक ही मैदान में थे| दोनों के बीच मुंबई के तख्त को लेकर गैंगवार शुरू हो चुकी थी| अरुण गवली के शार्पशूटर रवींद्र सावंत ने 18 अप्रैल 1994 को अमर नाइक के भाई अश्विन नाइक पर जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच गया|

मुंबई पुलिस ने 10 अगस्त 1996 को अरूण के दुश्मन अमर नाइक को एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया| इसके बाद अश्विन नाइक को भी गिरफ्तार कर लिया गया| बस तभी से मुंबई पर अरुण का राज चलने लगा| हमेशा सफेद टोपी और कुर्ता पहनने वाला अरुण गवली सेंट्रल मुम्बई की दगली चाल में रहा करता था| वहां उसकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे| हालात ये थे कि पुलिस भी वहां उसकी इजाजत के बिना नहीं जाती थी| दगड़ी चाल बिल्कुल एक किले की तरह थी| जिसके दरवाजे भी 15 फीट के थे| वहां गवली के हथियार बंद लोग हमेशा तैनात रहा करते थे|

वरदराजन मुदालियर

वरदराजन मुदालियर छोटे मोटे काम करके तंग आ चुका था| वो बड़े शहर में जाकर काम करना चाहता था| ताकि उसकी ज्यादा कमाई हो सके| 34 साल की उम्र में उसने अपना घर छोड़ने का इरादा किया| और 1960 के दशक में वह मुंबई चला गया| मुंबई जाकर जब कोई अच्छा काम नहीं मिला तो उसने वीटी स्टेशन पर एक कुली के रूप में काम करना शुरू कर दिया| वरदराजन वहीं स्टेशन के पास बाब बिस्मिल्लाह शाह की दरगाह पर गरीबों को खाना खिलाने लगा|

एक दिन स्टेशन पर उसकी मुलाकात अवैध शराब का धंधा करने वाले कुछ लोगों से हुई| उसने भी पैसे की खातिर अवैध शराब के धंधे में कदम रख दिया| मुंबई के लोग उसे वरदाभाई के नाम से जानने लगे|

करीम लाला

करीम लाला ने मुंबई में दिखाने के लिए तो कारोबार शुरू कर दिया था| लेकिन हकीकत में वह मुंबई डॉक से हीरे और जवाहरात की तस्करी करने लगा था| 1940 तक उसने इस काम में एक तरफा पकड़ बना ली थी| आगे चलकर वह तस्करी के धंधे में किंग के नाम से मशहूर हो गया था| तस्करी के धंधे में उसे काफी मुनाफा हो रहा था| पैसे की कमी नहीं थी| इसके बाद उसने मुंबई में कई जगहों पर दारू और जुएं के अड्डे भी खोल दिए| उसका काम और नाम दोनों ही बढ़ते जा रहे थे|

1940 का यह वो दौर था जब मुंबई में हाजी मस्तान और वरदाराजन मुदलियार भी सक्रिय थे| तीनों ही एक दूसरे से कम नहीं थे| इसलिए तीनों ने मिलकर काम और इलाके बांट लिए थे| करीम लाला की जानदार शख्सियत को देखकर हाजी मस्तान उसे असली डॉन के नाम से बुलाया करता था| तीनों बिना किसी खून खराबे के अपने अपने इलाकों में काम किया करते थे| उस दौरान इनके अलावा मुंबई में कोई गैंगस्टर नहीं था|

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