Home अजब गजब क्यों हनुमान भक्तों से दूर रहते है शनि देव, इसके पीछे है मजेदार कहानी…

प्रयागराज: न्याय का देवता कहे जाने वाले सूर्यपुत्र शनिदेव इंसान के कर्मों का लेखा-जोखा पृथ्वी पर ही करते हैं। अच्छा कर्म करने वाले पर प्रसन्न होते हैं औऱ बूरा कर्म करने वाले को दंडित कर देते हैं। जिस इंसान को शनिदेव को दंड देना होता है उस पर साढ़े सात तक शनि विराजमान होते हैं और ऐसे व्यक्ति को शारीरिक और मानिसक रुप से तमाम तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। शनिदेव के प्रकोप से कोई बचा सकता है तो वो एकलौते हनुमान जी हैं। आपको बताते हैं कि किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि शनिदेव हनुमान जी से दूर भागते हैं और हनुमान भक्त को भी छोड़ देते हैं।

जब कलयुग की शुरुआत हुई तो कृष्ण भगवान ने त्रेता युग समाप्त कर दिया था। इस युग में सिर्फ हनुमान जी थे जिन्हें कलयुग पर रहना था। एक बार हनुमान जी श्रीराम का ध्यान कर कर रहे थे। उसी समय शनिदेव उनके पास आकर बोले कि मैं यहां आपको सावधान करने आया हूं कि भगवान श्रीकृष्ण ने जिस समय अपनी लीला का समापन किया था उसी वक्त से धरती पर कलयुग का आगमन हो गया था। इस कलयुग मे कोई भी देवता पृथ्वी पर नहीं रहते।

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शनिदेन ने आगे कहा कि जो भी इस पृथ्वी पर रहता है उस पर मेरी साढ़ेसाती की दशा प्रभावी होती है। इस वजह से मैं आपको ये बताने आया हूं कि मेरी साढ़ेसाती की दशा आप पर प्रभावी होने वाली है। शनिदेव की बातें सुकर हनुमान जी ने कहा कि जो भी मनुष्य या देवता भगवान श्रीराम के चरणों में होता है उन पर काल का प्रभाव नहीं होता है, इसलिए आप मुझे छोड़कर कहीं भी चले जाएं क्योंकि मेरे शरीर पर प्रभु श्रीराम के अलावा और कोई भी प्रभाव नहीं डाल सकता।

हनुमान जा की बातें सुनकर शनिदेव ने कहा-मैं सृष्टिकर्ता के विधान से विवश हूं। आप भी इस पृथ्वी पर रहते हैं, इसलिए मेरे प्रभुत्व से नहीं बच सकते आपके ऊपर मेरी साढ़ेसाती अभी से प्रभावी हो रही है। इसके चलते मैं आज और अभी आपके शरीर पर आ रहा हूं, इसे कोई टाल नहीं सकता। इतना बोलकर शनिदेव हनुमान जी के माथे पर बैठ गए। हनुमान जी को सिर पर खुजली होने लगी।

हनुमान जी ने खुजली मिटाने के लिए एक बड़ा सा पर्वत उठाकर अपने सिर पर रख लिया। इससे शनिदेव दबने लगे और हनुमान जी से बोले ये आप क्या कर रहे हैं, तब हनुमान जी ने कहा कि जिस तरह से सृष्टि कर्ता के विधान से आप विवश हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वभाव से विवश हूं। मैं अपने सिर की खुजली इसी तरह से मिटाता हूं, आप अपना काम करिए, मैं अपना काम करता हूं।

उन्होंने पीड़ा से कराहते हुए कहा कि इन पर्वतों को नीचे उतारिए मैं आपसे किसी भी तरह की संधि करने को तैयार हूं। हनुमान जी ने एक औऱ पर्वत को अपने सिर पर रख लिया अब शनिदेव और भी ज्यादा तड़पने लगें। शनिदेव ने बहुत आग्रह की तब जाकर हनुमान जी ने उन्हें छोड़ा। शनिदेव ने कहा कि आज से मैं आपके नजदीक नहीं आउंगा और साथ ही जो व्यक्ति आपकी भक्ति करेगा उसे भी मैं किसी तरह का कष्ट नहीं दूंगा। इसके बाद हनुमान जी ने शनिदेव को तेल लगाकर उनका दर्द दूर किया। शनिदेव ने कहा की जो भी मनुष्य मुझे शनिवार को सच्ची श्रद्धा से तेल अर्पित करेंगा उसे भी कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इसके बाद से ही कहा जाता है कि जो मनुष्य भक्ति भाव से हनुमान जी की पूजा करता है वो ही शनिदेव के प्रकोप से बच पाता है।

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