Home कानपुर घर के सामने स्वास्तिक बनाने के रहस्य के बारे में जानते है आप, ये है महत्व

घर के सामने स्वास्तिक बनाने के रहस्य के बारे में जानते है आप, ये है महत्व

by

कानपुर: भारतीय संस्कृति में अनेक रहस्यों को समेटे हुए प्रतीकों का बड़ा महत्व है। प्रतीकों को गहराई से जानने और समझने वाला ही इनका रहस्य वही जान सकता है| यदि प्रतीकों को जान-समझ पाने में सफलता मिलती है तो इनसे अनगिनत लाभ उठाये जा सकते हैं।

प्रतीकों की इस श्रृंखला में सूर्य का प्रतीक माने जाने वाले ‘ स्वास्तिक ‘ भी भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है| अपनी संस्कृति में स्वास्तिक के अनगिनत आयाम हैं और इसे तरह-तरह से अभिव्यक्त किया गया है। स्वास्तिक का सामान्य अर्थ आर्शीवाद देने वाला, मंगल या पुण्यकार्य करने वाला है। यह शुभ या मांगलिक कार्यो एवं पुण्यकृतियों की स्थापना के रूप में प्रकट किया जाता है।

स्वास्तिक का मूल अर्थ

स्वास्तिक शब्द मूलभूत ‘सु + अस’ धातु से बना है। ‘सु’ का अर्थ कल्याणकारी एवं मंगलमय है,’ अस ‘का अर्थ है अस्तित्व एवं सत्ता। इस प्रकार स्वास्तिक का अर्थ हुआ ऐसा अस्तित्व, जो शुभ भावना से सराबोर हो, कल्याणकारी हो, मंगलमय हो। जहाँ अशुभता, अमंगल एवं अनिष्ट का लेश मात्र भय न हो। स्वास्तिक का अर्थ है ऐसी सत्ता, जहाँ केवल कल्याण एवं मंगल की भावना ही निहित हो, जहां औरों के लिए शुभ भावना सन्निहित हो। इसलिए स्वास्तिक को कल्याण की सत्ता और उसके प्रतीक के रूप में निरूपित किया जाता है।

विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की प्रतिमा की भी स्वास्तिक चिन्ह से संगति है। श्री गणेश जी के सूँड़, हाथ, पैर, सिर आदि अंग इस तरह से चित्रित होते हैं कि यह स्वास्तिक की चार भुजाओं के रूप में प्रतीत होते हैं।‘ॐ’ को भी स्वास्तिक का प्रतीक माना जाता है।‘ॐ’ ही सृष्टि के सृजन का मूल है, इसमें शक्ति, सामर्थ्य एवं प्राण सन्निहित हैं।ईश्वर के नामों में सर्वोपरि मान्यता इसी अक्षर की है।अतः स्वास्तिक ऐसा प्रतीक है, जो सर्वोपरि भी है और शुभ एवं मंगल दायक भी है।

स्वास्तिक का अर्थ आर्शीवाद, मंगल या पुण्य करना बताया गया है अर्थात सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो, ऐसी भावना स्वास्तिक के प्रतीक में सन्निहित है। देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिन्ह स्वास्तिक होता है, इसलिए इसे देवताओं की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक माना गया है। स्वास्तिक को शास्त्रों में शुभ एवं कल्याणकारी बताया गया है। प्राचीन काल में हमारे यहाँ कोई भी श्रेष्ठ कार्य करने से पूर्व मंगलाचरण लिखने की परंपरा थी। यह मंगलाचरण सभी के लिखना संभव नहीं था, परन्तु सभी इस मंगलाचरण का महत्व जानते थे एवं उसका लाभ भी लेना चाहते थे। इसलिए ऋषियों ने स्वास्तिक चिन्ह की परिकल्पना की ,जिससे सभी के कार्य मंगलप्रद ढंग से संपन्न हो सकें।

महत्व

आदि से स्वास्तिक को उकेरना मंगलमय माना जाता है। स्वास्तिक जहाँ भी उकेरा जाता है वहाँ की नकारात्मक उर्जा को नष्ट करता है। ब्रह्मांड में सकारात्मक उर्जा की धारा को अपनी ओर आकर्षित करने की इसमें अद्भभुत क्षमता है । इसी को आधार मानकर स्वास्तिक को अलग-अलग वस्तुओं से बनाया जाता है, जिनके अलग-अलग अर्थ होते हैं। जैसे सिंदूर या अष्टगंध से निर्मित स्वास्तिक शुभ और सात्विक माना जाता है। स्वास्तिक जहाँ भी होता है नकारात्मक उर्जा को नष्ट करता है और सकारात्मक उर्जा में वृद्धि करता है। इस तरह स्वास्तिक एक श्रेष्ठ एवं मंगलप्रद प्रतीक है, जो सदा कल्याणकारी होता है |

यह भी पढ़े- यहां मंदिर के फर्श पर लेटने से गर्भवती हो जाती हैं महिलाएं

You may also like

Leave a Comment